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जल संकट : जन-भागीदारी से निकलेगा हल

मनोज दुबे
गर्मी का पारा चढऩे के साथ पानी को लेकर संकट की स्थिति फिर से हर तरफ बढ़ती दिख रही है। वैसे भी लचर जल प्रबंधन और जल संचयन के प्रति उदासीनता के कारण विश्व के कई देश आज जल संकट का सामना कर रहे हैं।
जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाले समय में यह समस्या और गहरा सकती है। बात भारत की करें तो दुनिया में पीने योग्य जितना पानी है, उसका चार फीसद पानी भारत में है।

सरकारी आंकड़े बताते हैं कि वष्रा जल संरक्षण के लिए सरकारों द्वारा तमाम उपाय करने बावजूद हम बारिश के पानी से मात्र 300 मिलियन क्यूबिक मीटर ही रोक पा रहे हैं, जबकि वर्तमान में देश में 750-800 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी की आवश्यकता है। 50 साल पहले हमारे देश में प्रत्येक व्यक्ति के लिए पांच हजार क्यूबिक मीटर पानी उपयोग के लिए उपलब्ध रहता था, लेकिन आज घटकर यह 1500 क्यूबिक मीटर रह गया है। यानी दुनिया में जिस देश में जल को जगदीश मानने की परंपरा थी, दुर्भाग्य से आज उस देश में ही सबसे ज्यादा कंटेंमनेटेडेड वाटर रिसोर्सेस हैं। हमें समझना होगा कि प्रकृति हमें एक चक्र के रूप में जल प्रदान करती है।

हम इस चक्र का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं और इस चक्र के थमने का अर्थ है, हमारे जीवन का थम जाना। प्रकृति के खजाने से हम जितना पानी लेते हैं, उसे वापस भी हमें ही लौटाना है। भूमिगत जल स्तर का लगातार नीचे खिसकते जाना भविष्य के लिए खतरे की घंटी है। इसलिए जरूरी है कि लोग प्राकृतिक जल संसाधनों को दूषित न होने दें और पानी को व्यर्थ न गवाएं। सरकारों के साथ-साथ समाज को भी जल संकट के प्रति गंभीर होना होगा। अच्छी बात यह है कि केंद्र सरकार इस बात को गंभीरता से समझ रही है कि लोगों में जल एवं प्रकृति के संरक्षण के प्रति सामूहिक चेतना का निर्माण करके ही जल संरक्षण के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।

आने वाली पीढ़ी को उसकी जरूरत के हिसाब से पानी मिल सके इसके लिए बेहद जरूरी है कि जल संरक्षण से जुड़े अभियानों में जनता को, सामाजिक संगठनों को और सिविल सोसाइटी को ज्यादा से ज्यादा जोड़ा जाए। स्वच्छ भारत अभियान इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। स्वच्छ भारत अभियान में जब लोग जुड़े, तो उनके भीतर एक नई चेतना का संचार हुआ। अब केंद्र के साथ ही सभी राज्य सरकारों को जन-भागीदारी की यही सोच जल संरक्षण के लिए भी जनता के मन में जगानी होगी। जल संरक्षण के लिए आज देश के प्रत्येक जिले में 75 अमृत सरोवर बनाए जा रहे हैं। विश्व में यह अपनी तरह का अनोखा अभियान है और अच्छी बात यह है कि इसमें जन-भागीदारी जुड़ी है।

आने वाले समय में पेयजल की समस्या विकराल रूप धारण करे इससे पहले पॉलिसी लेवल पर भी पानी से जुड़ी परेशानियों के समाधान के लिए सरकारी नीतियों और ब्यूरोक्रेटिक प्रक्रियाओं से देश को बाहर आना होगा। जल संरक्षण के लिए केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई ‘अटल भूजल संरक्षण योजना’ एक संवेदनशील अभियान है और इसे उतनी ही संवेदनशीलता से आगे बढ़ाने की जरूरत है। भूजल प्रबंधन के लिए बनाए गए प्राधिकरण सख्ती से इस दिशा में काम करें, ये भी सुनिश्चित करना होगा। इसके साथ ही अगर जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटना है तो भूजल रिचार्ज के लिए सभी जिलों में बड़े पैमाने पर वाटर-शेड का निर्माण करने के बारे में राज्य सरकारों को विचार करना होगा।

इसके अलावा पहाड़ी क्षेत्रों में स्प्रिंग शेड को पुनर्जीवित करने का जो कार्यक्रम शुरू किया गया है उस पर तेजी से काम करना होगा। जल संरक्षण के लिए वन क्षेत्रों को बढ़ाना सबसे ज्यादा जरूरी है। हाल के वर्षो में हमने देखा है कि ‘कैच द रेन’ अभियान ने लोगों के बीच एक आकषर्ण तो पैदा किया है, लेकिन सफलता के लिए अभी बहुत कुछ करना जरूरी है। इसमें दो राय नहीं कि बीते कुछ दशकों में जल संरक्षण की दिशा में ऐसी गंभीरता नहीं दिखाई गई जैसी वर्तमान केंद्र सरकार द्वारा दिखाई जा रही है। इसका सबसे अच्छा पहलू यह है कि अब इस दिशा में ऐसी योजनाएं तैयार हो रही हैं, जिनसे आमजन को जोड़ा जा रहा है।

इस बार के केंद्रीय बजट में स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के लिए 7192 करोड़ रुपये और जल जीवन मिशन के लिए 70,000 करोड़ का बजट आवंटित है। वहीं, देश की नदियों को जोडऩे के लिए 3,500 करोड़ रुपये का प्रावधान बजट में है। साथ ही अटल भूजल योजना के लिए 1000 करोड़, नेशनल हाइड्रोलॉजी प्रोजेक्ट के लिए 500 करोड़, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के लिए 8587 करोड़ आवंटित किए गए हैं। जल से जुड़े इन क्षेत्रों में मोदी सरकार द्वारा जारी भारी-भरकम राशि जल संकट से निपटने के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाती है, लेकिन लोगों को भी इस दिशा में गंभीरता से सोचना होगा। जल की सुरक्षा किसी सरकार या संगठन का ही नहीं, बल्कि देश की 140 करोड़ लोगों का सबसे बड़ा दायित्व होना चाहिए।

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