ब्लॉग

कुश्ती पहलवानों की पीड़ा

अजय दीक्षित
जिन पहलवानों ने कुश्ती के अन्तर्राष्ट्रीय मुकाबलों में भारत के लिए, पदक जीते थे, तब वह ‘राष्ट्रीय नायक’ था। महिला या पुरुष कुछ भी हो  सकता है। वह चेहरा भारतीय खिलाड़ी का था। वह किसी भी खेल का प्रतिनिधि हो सकता है, लेकिन जीत के ऐसे लम्हों में हमारा ‘तिरंगा’ सम्मानित होता है। राष्ट्रगान की धुन बजाई जाती है। देश और प्रधानमंत्री गौरवान्वित महसूस करते हुए तालियां बजाते हैं। रोड शो के जरिए उन खिलाडिय़ों का अभिनंदन किया जाता है । उन्हें सम्मानों से नवाजा जाता है और सरकारी नौकरियां भी मुहैया कराई जाती हैं ।  प्रधानमंत्री ने अपने आवास पर भारत के ऐसे होनहार, पदकवीर खिलाडिय़ों को रात्रि भोज दिया है, यह समूचा देश जानता है।

आज वही खिलाड़ी जंतर-मंतर पर धरना दिए बैठे हैं। उनकी आंखों में आंसू हैं, मन में गहरी निराशा है। क्या वे अब देश के लिए ‘दंगल’ लड़ पाएंगे? क्या प्रधानमंत्री और सरकार के संज्ञान में नहीं है कि महिला पहलवानों ने यौन उत्पीडन के आरोप लगाए हैं। एक पहलवान तो 16 वर्षीय नाबालिग बताई गई है। सीधा ‘पॉक्सो’ का केस बनता है और आरोपित व्यक्ति जेल में होना चाहिए था। चूंकि भारतीय कुश्ती संघ का अध्यक्ष, भाजपा का 6 बार का बाहुबली सांसद, ब्रजभूषण शरण सिंह है, लिहाजा मुद्दे को लटकाया, भटकाया जा रहा है। पुलिस भी प्राथमिकी दर्ज करने में कन्नी काट रही है। बजरंग पूनिया, विनेश फोगाट, रवि दहिया, साक्षी मलिक, दीपक पूनिया सरीखे चैम्पियन, पदकवीर पहलवानों को दुनिया जानती है। उन्होंने कुश्ती के लिए ‘मील- पत्थर’ स्थापित किए हैं। दुनिया उनके दंगल की दाद देती रही है।

वे यौन शोषण की शिकार पहलवान-बेटियों की लड़ाई लड़ रहे हैं। उन्हें शर्म आनी चाहिए, जो उनकी जीत पर गर्वोन्मत्त हुए थे। पहलवान-बेटियों को, अंतत:, सर्वोच्च अदालत की चौखट तक जाना पड़ा ।  दुनिया देश पर थू-थू कर रही होगी। देश के प्रधान न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने भी आरोपों को गंभीर माना है और दिल्ली पुलिस का जवाब तलब किया है। आज शीर्ष अदालत में सुनवाई है। दरअसल बुनियादी सवाल और चिंता खेल की है। खेलों के मामले में भारत अपेक्षाकृत कमजोर है। ऐसे यौन उत्पीडऩ किए जाएंगे, तो कमोबेश कौन मां-बाप अपनी बेटी को खेलने की इजाजत देगा? ये विश्वविख्यात पहलवान जनवरी, 2023 में भी जंतर-मंतर पर ही बैठे थे, तब उन्होंने खेल मंत्रालय के आश्वासन पर भरोसा करने की गलती की थी। इस अंतराल में मुक्केबाजी की 6 बार की विश्व चैम्पियन रहीं मैरी कोम की अध्यक्षता वाली कमेटी ने क्या निष्कर्ष तय किए, क्या रपट तैयार की और सच तक पहुंचने की कोशिश की, सब कुछ परदे में है।

पहलवान रही और कमेटी की एक सदस्य बबीता फोगाट के रपट पर हस्ताक्षर किस तरह जबरन कराए गए और उनसे रपट भी छीन ली गई, इसका खुलासा उन्होंने ही किया है। कुश्ती संघ में ब्रजभूषण का आज भी वर्चस्व है। वरिष्ठ कोचों और संघ के अधिकारियों द्वारा महिला पहलवानों के परिजनों तक को धमकाया जा रहा है। पैसे. का लालच दिया जा रहा है। वे सभी दबाव में हैं। यह खुलासा भी धरने वालों ने ही किया। अदालत में सच सामने आ सकता है । सवाल यौन हिंसा का है और नया कानून बेहद सख्त है। प्राथमिकी दर्ज न करने वाला पुलिस अफसर भी नप सकता है ।

सवाल यह भी है कि आज कुश्ती में कुकर्म सामने आ रहे हैं, तो कल दूसरे खेलों की महिला खिलाडिय़ों के साथ घिनौनेपन किए जा सकते हैं। भारत में महिला क्रिकेट और हॉकी टीमें भी खेल रही हैं। बैडमिंटन और निशानेबाजी, तीरंदाजी आदि खेलों में भी महिलाओं ने विश्व कीर्तिमान स्थापित किए हैं। क्या खेल संघों के पुरुषों की हवस के लिए खेलों की बलि दी जा सकती है? यदि प्रधानमंत्री मोदी भी ऐसे मामलों पर खामोश हैं, तो यह ठीक नहीं है ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *