एक साथ चुनाव की मंशा कब थी?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक देश, एक चुनाव की बात करीब 10 साल से कह रहे हैं और चुनाव आयोग करीब 40 साल से कह रहा है। लेकिन पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने की वास्तविक मंशा कभी नहीं दिखी। अगर प्रधानमंत्री मोदी या चुनाव आयोग की वास्तविक मंशा होती तो अब तक कुछ सार्थक पहल हुई होती। पिछले करीब 10 साल में हर साल चुनाव होते रहे और कभी यह सोचा गया कि कुछ राज्यों के चुनाव आगे पीछे करके उनको क्लब किया जाए और पूरे देश में एक बार में या ज्यादा से ज्यादा दो बार में चुनाव कराए जाए। अगर ऐसा सोचा गया होता तो अब तक इस लक्ष्य को हासिल कर लिया गया होता। लेकिन अभी तक इस आइडिया का इस्तेमाल सनसनी बनाने के लिए ही किया गया है।
सबसे पहले तो यह समझना चाहिए कि पूरे देश में एक साथ चुनाव कराया जा सकता है लेकिन यह सुनिश्चित करना बहुत मुश्किल है कि हर लोकसभा और हर विधानसभा अपना कार्यकाल पूरा करे। इसलिए किसी मुकाम पर गाड़ी पटरी से उतर सकती है, जैसे 1967 के बाद उतर गई थी। इसलिए ज्यादा व्यावहारिक यह है कि राज्यों के चुनाव को क्लब करके दो बार में कराया जाए। पांच साल में दो बार चुनाव कराए जा सकते हैं, जैसे अमेरिका में मिड टर्म के चुनाव होते हैं। अगर केंद्र सरकार और चुनाव आयोग चाहते तो कई साल पहले ऐसा हो चुका होता। लेकिन पिछले 10 साल में हर साल दो-दो, चार-चार महीने के अंतराल पर चुनाव होते रहे।
मिसाल के तौर पर इस साल के शुरू में त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड में चुनाव हुए। फिर मई में कर्नाटक के चुनाव हुए और नवंबर में राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम के चुनाव होने वाले हैं। अगले साल लोकसभा के साथ ओडिशा, आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम में चुनाव हैं और साल के अंत में तीन अलग अलग महीनों में महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड के चुनाव हैं। अगर केंद्र सरकार और चुनाव आयोग एक साथ चुनाव पर सीरियस होते तो थोड़ा आगे-पीछे करके इन 16 राज्यों के चुनाव और लोकसभा के चुनाव एक साथ कराए जा सकते थे।